हाथरस। आए दिन काॅलेजों में छात्र/छात्राओं के साथ होने वाली घटनाएं समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है। इन घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए शिक्षक कल्याण समिति के मंत्री नथमल गुप्ता ने सभ्य समाज के लिये शर्मनाक कहा है। गुप्ता ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने 1 दिसम्बर 2000 को बच्चों के शारीरिक दण्ड पर प्रतिबन्ध लगाते हुए राज्य सरकारों से कहा गया था कि बच्चों को स्कूलों में शारीरिक दण्ड न दिया जाए। गुप्ता ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार (उ0प्र0) ने स्कूलों में शारीरिक दण्ड पर प्रतिबन्ध लगाते हुए पत्रांक सं0 1466/15-7-2007 जारी की जिसमें कहा गया है कि शारीरिक दण्ड में बच्चों को डाटना, फटकारना, विद्यायल परिसर में दौडाना, मुर्गा बनाना, छड़़ी से पीटना, यौन शोषण, चिकोटी काटना, तमाचा मारना, चपत मारना, प्रताड़ना, क्लास रूम में अकेले बंद कर देना ये सभी कृत्य शारीरिक एंव मानसिक रूप से आघात पहुॅचाने वाले शामिल हैं। शारीरिक दण्ड बच्चों के मूलभूत मानव अधिकारों का उल्लंघन करते है। शारीरिक दण्ड की घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कठोर कार्यवाही अमल में लानी चाहिए, जिससे कि अभिभावकों को पुलिस विभाग में न जाना पडे। गुप्ता ने शिक्षकों, शिक्षिकाओं एंव प्रबन्धकों से अपील की है कि विद्यालयों में अनुशासन एंव होमवर्क के नाम पर बच्चों को शारीरिक दण्ड न देकर सहानभूति पूर्वक व्यवहार करें क्यांकि बच्चे भगवान का रूप होते हैं।